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India China AI Deal 2025: चीन ने भारत से मांगी मदद, क्या ड्रैगन की टेक्नोलॉजी बिना भारत के अधूरी है?

Published On: सितम्बर 1, 2025
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India China AI Deal 2025 किन क्षेत्रों में भारत देगा सहयोग?
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नई दिल्ली | 1 सितंबर 2025 | पढ़ने का समय: 4 मिनट

भारत और चीन के रिश्ते अक्सर सीमाओं, बाज़ार और राजनीति को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन इस बार कहानी थोड़ी अलग है। अब इन दोनों देशों के बीच आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर एक नई साझेदारी की शुरुआत हुई है। दिलचस्प बात ये है कि चीन ने भारत से हेल्थकेयर, कृषि और शिक्षा में AI टेक्नोलॉजी के लिए सहयोग मांगा है और भारत ने भी मदद करने का भरोसा दिया है।

Read In English –India-China AI Deal 2025: Is China Really Seeking India’s AI Help? Here’s What’s Brewing in the New Tech Alliance

India China AI Deal 2025: चीन सच में भारत से AI में मदद मांग रहा है?

जहां भारत तेज़ी से AI को हेल्थकेयर में लागू कर रहा है, वहीं कृषि में भी स्मार्ट सॉल्यूशन्स लेकर आया है। दूसरी तरफ़ चीन भले ही AI की रिसर्च में आगे दिखता हो, लेकिन जब बात ग्रामीण कृषि या हेल्थकेयर जैसी वास्तविक समस्याओं पर आती है, तो भारत के पास ज़्यादा व्यावहारिक अनुभव है। शायद यही वजह है कि चीन भारत की तरफ़ हाथ बढ़ा रहा है।

ड्रैगन का नया प्लान: AI से अमेरिका की नींद उड़ाना

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साफ कहा है कि उनका इरादा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए अमेरिका के दबदबे को चुनौती देना है। लेकिन मुश्किल यह है कि अकेले चीन के बस की यह बात नहीं। यही कारण है कि ड्रैगन ने अब भारत का दरवाज़ा खटखटाया है।

अगर भारत चीन के साथ खड़ा होता है, तो बीजिंग को न सिर्फ टेक्नोलॉजी का फायदा मिलेगा, बल्कि ग्लोबल साउथ एआई फोरम जैसा सपना भी पूरा हो सकता है। इस मंच के ज़रिए एशियाई देशों को भी अपनी AI ताकत दिखाने का मौका मिलेगा।

भारत क्यों है “मास्टरपीस” पार्टनर?

  • चीन के पास हार्डवेयर है, लेकिन सॉफ्टवेयर में वह कई बार फिसल जाता है।
  • भारत के पास मजबूत सॉफ्टवेयर टैलेंट और विशाल डिजिटल मार्केट है।
  • भारत की UPI और डिजिटल गवर्नेंस मॉडल को दुनिया सलाम कर रही है।

यानी, अगर दोनों देश साथ आते हैं, तो यह साझेदारी “Geography + Technology का सबसे अनोखा कॉम्बिनेशन हो सकता है।

भारत के लिए ये डील क्यों अहम है?

भारत के लिए ये सिर्फ़ टेक्नोलॉजी का मामला नहीं है, बल्कि रणनीतिक बढ़त का भी सवाल है। हेल्थकेयर डेटा से लेकर खेती-किसानी तक, भारत AI को ज़मीनी स्तर पर अपनाने में लगा हुआ है। ऐसे में अगर चीन सहयोग करता है, तो दोनों देशों की ताकतें मिलकर ग्लोबल AI इकोसिस्टम में बड़ी हलचल मचा सकती हैं।

असली खेल क्या है? – मदद या “डिप्लोमैटिक चेस”?

अब बड़ा सवाल यह है कि भारत चीन की इस गुहार पर कितना भरोसा करेगा। क्योंकि, टेक्नोलॉजी साझेदारी सिर्फ डेटा और एल्गोरिद्म की बात नहीं, बल्कि ट्रस्ट और पॉलिटिक्स का भी खेल है।

क्योंकि भारत अभी डेटा प्रोटेक्शन और नैतिक AI गवर्नेंस पर काफ़ी सख़्त है। ऐसे में आने वाले समय में असली इम्तिहान इस सहयोग की पारदर्शिता और संतुलन का होगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत चाहे तो इस मौके का इस्तेमाल कर चीन पर कूटनीतिक बढ़त ले सकता है। आखिरकार, “एआई की बोर्ड परीक्षा” में टॉपर बनने के लिए हर कोई भारत की कॉपी देखना चाहता है।

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