प्रकाशित: सोमवार, 25 अगस्त 2025 | नई दिल्ली | पढ़ने का समय: 4 मिनट
सारांश – MIT की ताज़ा स्टडी ने चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं—करीब 95% जनरेटिव AI प्रोजेक्ट असफल साबित हुए हैं। सोशल मीडिया पर #AIBubble और #AIHype जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जिससे निवेशकों और टेक कंपनियों के बीच बेचैनी बढ़ गई है।
95% जनरेटिव AI प्रोजेक्ट फेल, क्या सच में AI की रफ्तार रुक रही है?
पिछले दो सालों में जनरेटिव AI को लेकर जितना शोर मचाया गया, अब उसी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। Massachusetts Institute of Technology (MIT) की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टार्टअप्स से लेकर बड़ी कंपनियों तक ने अरबों डॉलर जनरेटिव AI पर लगाए, लेकिन 95% प्रोजेक्ट उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। इसका सबसे बड़ा कारण है—स्पष्ट बिज़नेस मॉडल की कमी, अधूरी टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन और उच्च लागत।
Read In English -MIT Study Shatters AI Hype :Is the AI Boom About to Bust? MIT Study Says 95% of Generative AI Projects Are Failing
यह रिपोर्ट आते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। X (पहले ट्विटर) पर हजारों यूज़र्स ने लिखा कि “AI असलियत से ज्यादा सिर्फ हाइप है।” वहीं, YouTube पर कई बड़े टेक चैनलों ने इस स्टडी पर वीडियो बनाए, जिन पर लाखों व्यूज़ मिल रहे हैं।
क्यों है ये रिपोर्ट चर्चा में?
AI को लेकर पिछले एक साल में भारी निवेश हुआ, खासकर अमेरिका, चीन और भारत जैसे देशों में। स्टार्टअप्स ने वादा किया कि AI हर सेक्टर को बदल देगा—हेल्थकेयर, एजुकेशन, फाइनेंस से लेकर एंटरटेनमेंट तक। लेकिन हकीकत ये है कि ज्यादातर कंपनियां अपनी तकनीक को स्केल नहीं कर पा रही हैं और निवेशकों का पैसा डूब रहा है।

MIT की रिसर्चर टीम का कहना है, “AI एक क्रांतिकारी तकनीक है, लेकिन मौजूदा समय में यह ज्यादा प्रयोगात्मक (experimental) चरण में है। इसे तुरंत बिज़नेस सफलता के रूप में देखना गलत होगा।”
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
भारत ने हाल के महीनों में AI रिसर्च और स्टार्टअप्स पर तेज़ी से फोकस बढ़ाया है। दिल्ली और बेंगलुरु जैसे हब्स में AI कंपनियों का उभार देखने को मिला है। लेकिन इस रिपोर्ट के बाद भारतीय निवेशक भी सतर्क हो गए हैं। अगर अमेरिका और यूरोप में निवेशक पीछे हटते हैं, तो भारत की AI फंडिंग पर भी असर पड़ सकता है।

आगे की राह क्या है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि AI पूरी तरह फेल नहीं हो रहा है, बल्कि यह एक रीयलिटी चेक है। टेक्नोलॉजी को ज़्यादा व्यावहारिक बनाने और इसे लंबे समय तक टिकाऊ मॉडल में बदलने की ज़रूरत है। जिन कंपनियों के पास सही उपयोग केस (use case) होंगे, वही इस “AI बबल” से बच पाएंगी।
क्या वाकई फूटेगा AI बबल?
MIT की रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि AI फिलहाल “ओवरहाइप्ड” है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भविष्य में इसका असर कम होगा। असली सवाल ये है कि कौन-सी कंपनियां धैर्य और सही रणनीति अपनाकर इस संकट से बाहर निकलेंगी।
