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क्या Google Chrome बिकने वाला है? $34.5 बिलियन की डील ,किसने की बड़े खिलाड़ी से टकराने की हिम्मत?

Published On: August 13, 2025
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Perplexity AI का 34.5 अरब डॉलर का प्रस्ताव Google Chrome के लिए दर्शाता कॉन्सेप्ट आर्ट
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नई दिल्ली | 13 अगस्त 2025 | पढ़ने का समय: ~4 मिनट

Offer ने क्यों मचाई हलचल, और क्या सच में सौदा संभव है?

Perplexity के इस प्रस्ताव ने उद्योग के कई सवाल खड़े कर दिए हैं। Chrome का कब्ज़ा हासिल करना मतलब है अरबों यूज़र्स तक सीधा पहुंच, ब्राउज़र-लेवल पर सर्च और AI इंटीग्रेशन का मौका, और विज्ञापन-आधारित बिजनेस मॉडल में घुसपैठ।

Read in English :Perplexity AI & google chrome Acquisition: Is Perplexity AI Really Trying to Buy Google Chrome for $34.5 Billion?

लेकिन असल सवाल यह है कि क्या Google अपने सबसे अहम प्रोडक्ट में से किसी को बेचने पर विचार करेगा? ऐतिहासिक रूप से देखे तो ब्राउज़र और सर्च Google की सबसे बड़ी परिसंपत्तियों में से हैं, इसलिए प्रैक्टिकल तौर पर यह सौदा संभव नज़र नहीं आता।

पर्प्लेक्सिटी के इस ऑफर के पीछे असली मकसद क्या है?

Perplexity का प्रस्ताव है कि उसके AI-संचालित सर्च को सीधे क्रोम में इंटीग्रेट किया जाए, जिससे पारंपरिक सर्च इंजनों को पूरी तरह बायपास किया जा सके। यह कदम इंटरनेट पर जानकारी खोजने के तरीके को पूरी तरह बदल सकता है और पर्प्लेक्सिटी को ब्राउज़िंग अनुभव के केंद्र में ला सकता है।

हालांकि, आलोचकों का मानना है कि गूगल के लिए अपने इस ‘क्राउन ज्वेल’ को छोड़ना बेहद मुश्किल होगा, खासकर तब जब क्रोम उसके विज्ञापन और सर्च वर्चस्व को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।

क्या Perplexity सच में क्रोम खरीद सकती है?

M&A विशेषज्ञों का कहना है कि टेक इंडस्ट्री में इस पैमाने के बिना मांगे गए ऑफर बेहद दुर्लभ होते हैं और अक्सर इन्हें एक रणनीतिक पब्लिसिटी मूव के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

एक छोटा या बड़ा AI खिलाड़ी जब इतनी भारी बोली सार्वजनिक करता है, तो वह खबरों में छा जाता है, निवेशकों का ध्यान आकर्षित करता है और बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।

दूसरी ओर, अगर Perplexity ने यह ऑफर गंभीरता से रखा है, तो यह दिखाता है कि AI कंपनियाँ अब ब्राउज़र जैसे पारंपरिक प्लेटफॉर्म्स को भी अपनी रेस का अगला लक्ष्य मान रही हैं।

“भले ही अल्फाबेट इस डील को ठुकरा दे, पर्प्लेक्सिटी पहले ही वैश्विक सुर्खियां बटोर चुकी है और खुद को AI-प्राथमिक वेब युग में एक असली प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित कर चुकी है।”

— अनन्या राव, टेक विश्लेषक, मुंबई स्थित फर्म टेकस्फेयर

यह सौदा गूगल को क्या फायदा दे सकता है?

अगर गूगल यह ऑफर स्वीकार करता है, तो उसे 34.5 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम मिलेगी और साथ ही क्रोम को बनाए रखने का महंगा बोझ भी हट जाएगा। इससे गूगल को अपने मुख्य बिज़नेस एआई, क्लाउड और हार्डवेयर पर पूरी तरह ध्यान देने का मौका मिलेगा, बिना इस दबाव के कि क्रोम को बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बनाए रखना है। इसके अलावा, गूगल पर्प्लेक्सिटी के साथ लंबे समय के साझेदारी समझौते भी कर सकता है, जिससे जीमेल, यूट्यूब और गूगल सर्च जैसी उसकी सेवाएं ब्राउज़र अनुभव का हिस्सा बनी रहेंगी।

इससे उपयोगकर्ताओं और ब्राउज़र बाजार पर क्या असर पड़ सकता है?

अगर कभी ऐसा नियंत्रण बदलता भी है, तो ब्राउज़र के अंदर AI-संचालित सर्च और शॉर्टकट्स आम हो सकते हैं, जिससे लोग सीधे ब्राउज़र में ही प्रश्न पूछकर जवाब पा सकेंगे। इससे सर्च इंजनों और पब्लिशर्स की ट्रैफिक संरचना बदल सकती है, विज्ञापन मॉडल पर असर आ सकता है, और प्राइवेसी व डेटा शेयरिंग पर नए नियमों की चर्चा तेज हो जाएगी।

क्या अभी चिंता की जरूरत है, या बस खबरों का शोर?

तात्कालिक तौर पर उपयोगकर्ताओं को घबराने की जरूरत नहीं है। Google के निर्णयों पर नियामक, कॉर्पोरेट रणनीति और आर्थिक गणना का असर होता है, इसलिए एक ऑफर आना और सौदा होना दो अलग चीजें हैं। लेकिन यह घटना साफ दिखाती है कि AI कंपनियाँ अब बड़े प्लेटफॉर्म्स तक पहुंच बनाने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रही हैं, और यही बात अगले 12–24 महीनों में टेक इकोसिस्टम को बदल सकती है।

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