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केरल हाईकोर्ट AI गाइडलाइन 2025: क्या AI जजों की कुर्सी हिला देगा? केरल हाईकोर्ट की नई गाइडलाइन ने मचाया बवाल!

Published On: जुलाई 23, 2025
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Kerala courtroom with a judge’s bench and a digital screen showing “AI Restricted” sign, featuring Kerala emblem and “Kerala HC AI Guidelines 2025” watermark, designed for SEO engagement.
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Kochi | Date: July 23, 2025 | ⏱️ Read Time: 4 minutes

AI को कोर्ट में कितनी आजादी?

केरल हाईकोर्ट ने देश में पहली बार जजों और कोर्ट स्टाफ के लिए AI टूल्स के इस्तेमाल पर सख्त गाइडलाइन जारी की है। ये नियम कहते हैं कि AI को सिर्फ छोटे-मोटे कामों, जैसे दस्तावेज़ ट्रांसलेशन या शेड्यूलिंग, के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन फैसले लेने या कानूनी तर्क के लिए? बिल्कुल नहीं! ये कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि AI के बेतरतीब इस्तेमाल से प्राइवेसी, डेटा सिक्योरिटी और कोर्ट के फैसलों पर भरोसे को खतरा हो सकता है। तो आखिर ये गाइडलाइन क्या कहती है, और ये इतनी चर्चा में क्यों है?

केरल हाईकोर्ट की गाइडलाइन में क्या है खास?

हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि AI का रोल सिर्फ असिस्टेंट का है, जज का नहीं। मुख्य नियम इस प्रकार हैं:

  • फैसलों पर बैन: AI टूल्स, जैसे चैटGPT, जेमिनी, या डीपसीक, का इस्तेमाल किसी भी फैसले, राहत, या ऑर्डर लिखने के लिए नहीं होगा।
  • केवल अप्रूव्ड टूल्स: सिर्फ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूर AI टूल्स ही इस्तेमाल हो सकते हैं, वो भी गैर-न्यायिक कामों के लिए।
  • पूरा रिकॉर्ड: हर बार AI इस्तेमाल करने का पूरा हिसाब रखना होगा, जिसमें टूल का नाम और वेरिफिकेशन प्रोसेस शामिल होगा।
  • ट्रेनिंग जरूरी: जजों और स्टाफ को AI के नैतिक, कानूनी और तकनीकी इस्तेमाल की ट्रेनिंग लेनी होगी।
  • गलती की सजा: नियम तोड़ने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।

क्यों पड़ी इसकी जरूरत?

AI टूल्स की बढ़ती लोकप्रियता ने कोर्ट में भी अपनी जगह बना ली थी। लेकिन कई बार AI गलत या पक्षपाती जानकारी देता है, जिससे फैसलों की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, केरल हाईकोर्ट ने साफ कहा कि “न्याय देने में मानवीय तर्क और बुद्धि को कोई मशीन रिप्लेस नहीं कर सकती”। साथ ही, क्लाउड-बेस्ड AI टूल्स से डेटा लीक का खतरा भी रहता है, जो कोर्ट की गोपनीयता को चोट पहुंचा सकता है।

क्या हैं चुनौतियां?

ये नियम भले ही सख्त हों, लेकिन इनके सामने कुछ सवाल भी हैं:

  • प्राइवेसी का डर: AI टूल्स में केस की जानकारी डालने से डेटा लीक हो सकता है।
  • टेक्निकल गड़बड़ियां: AI कई बार गलत या अधूरी जानकारी देता है, जिसे जजों को खुद चेक करना होगा।
  • ट्रेनिंग की कमी: क्या सभी जज और स्टाफ AI की बारीकियों को समझने के लिए तैयार हैं?
  • लागत का सवाल: अप्रूव्ड AI टूल्स और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की लागत कौन उठाएगा?

लोगों का क्या कहना है?

कुछ लोग इसे भविष्य की ओर कदम मान रहे हैं, जो कोर्ट में टेक्नोलॉजी को जिम्मेदारी से इस्तेमाल करने की राह खोलता है। लेकिन कुछ का कहना है कि AI को पूरी तरह बैन करना ज़रूरत से ज़्यादा सख्ती है। क्या इसे सिर्फ गाइडलाइंस के साथ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता? एक्स पर लोग इसे “न्याय में इंसानी दिमाग की जीत” बता रहे हैं, लेकिन कईयों को लगता है कि इससे टेक्नोलॉजी का सही फायदा नहीं उठाया जा रहा।

क्यों है ये चर्चा में?

ये भारत में अपनी तरह का पहला नियम है, जो AI के इस्तेमाल को कोर्ट में सख्ती से कंट्रोल करता है। अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, ये गाइडलाइन न सिर्फ केरल बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकती है। AI का गलत इस्तेमाल रोकने के साथ-साथ ये कोर्ट की विश्वसनीयता को भी बनाए रखने की कोशिश है। लेकिन सवाल ये है—क्या ये नियम भविष्य में AI के फायदों को सीमित कर देंगे, या ये कोर्ट को और भरोसेमंद बनाएंगे?

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